12th Political Science Ncert Solutions in Hindi Chapter 1 शीत युद्ध का दौर

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Class 12th Political Science Ncert Solutions in Hindi Chapter 1 | शीत युद्ध का दौर

Ncert Solutions For Class 12th Political Science in Hindi | Chapter – 1  शीत युद्ध का दौर –

अध्याय – 1  शीत युद्ध का दौर [ Cold War Era]

महत्वपूर्ण बिन्दु [ Important point ]

 

  • सर्वप्रथम अमेरिकी विद्वान बनाई बारुच ने ‘शीत युद्ध’ शब्द का प्रयोग किया तथा जिसको प्रो. लिपमैन ने प्रचारित किया।
  • शीत युद्ध का प्रारम्भ दूसरे विश्व युद्ध के पश्चात् से ही हुआ ।
  • दूसरे विश्व युद्ध के पश्चात् विश्व में दो महाशक्तियों संयुक्त राज्य अमेरिका तथा समाजवादी सोवियत गणराज्य का प्रादुर्भाव हुआ।
  • पहली महाशक्ति संयुक्त राज्य अमेरिका ने विश्व के देशों को पूँजीवादी तथा दूसरी महाशक्ति सोवियत संघ ने साम्यवादी विचारधाराओं में विभक्त किया।
  • अधिकांश पश्चिमी यूरोपीय देश जहाँ अमरेरिका के अनुयायी थे, वहीं पूर्वी यूरोपीय देश सोवियत संघ के गुट में शामिल थे।
  • अप्रैल 1949 में अमेरिका ने उत्तर अटलांटिक सन्धि संगठन (नाटो) की स्थापना की थी जिसके प्रति उत्तर में सोवियत संघ के नेतृत्व में 1955 में ‘वारसा सन्धि’ स्थापित की गई।
  • 1962 में क्यूबा पर अमेरिकी हमले की आशंका के चलते सोवियत नेता निकिता खुश्चेव ने क्यूबा में परमाणु मिसाइलें तैनात कराई।
  • शीत युद्ध का चरम बिन्दु ‘क्यूबा मिसाइल संकट’ था।
  • दोनों महाशक्तियों के बीच हथियारों के परिसीमन के लिए अनेक दौर की वार्ताओं के दौरान अस्त्रों पर प्रभावी अंकुश लगाने के लिए अनेक समझौते किए गए।
  • भारत जैसे विकासशील देशों ने दोनों महाशक्तियों के गुटों से अलग रहने के लिए गुट निरपेक्ष आन्दोलन की स्थापना की थी।
  • 1956 में जोसेफ ब्रॉज टीटो (युगोस्लाविया) पण्डित जवाहरलाल नेहरू (भारत) तथा गमाल अब्दुल नासिर (मिस्र) ने गुट निरपेक्ष आन्दोलन की आधारशिला रखी थी।
  • 1961 में बेलग्रेड में आयोजित प्रथम गुट निरपेक्ष सम्मेलन में जहाँ इसके 25 सदस्य थे वहीं वर्तमान में इसके 120 सदस्य हैं।
  • गुट निरपेक्ष आन्दोलन में सम्मिलित विकासशील देशों के समक्ष प्रमुख चुनौती अपने देश का आर्थिक विकास करना था।
  • गुट निरपेक्ष आन्दोलन तथा नवीन अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था ने दो ध्रुवीय विश्व को सशक्त चुनौती दी।

 

पाठान्त प्रश्नोत्तर [ End-of-course Question and Answer ]

 

प्रश्न 1. शीत युद्ध के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन गलत है?

(क) यह संयुक्त राज्य अमरीका, सोवियत संघ और उनके साथी देशों के बीच की प्रतिस्पर्धा थी |

(ख) यह महाशक्तियों के बीच विचारधाराओं को लेकर एक युद्ध था

(ग) शीत युद्ध ने हथियारों की होड़ शुरू की,

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(घ) अमरीका और सोवियत संघ सीधे युद्ध में शामिल थे।

उत्तर- (घ) अमरीका और सोवियत संघ सीधे युद्ध में शामिल थे।

 

प्रश्न 2. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन गुट निरपेक्ष आन्दोलन के उद्देश्यों पर प्रकाश नहीं डालता ?

(क) उपनिवेशवाद से मुक्त हुए देशों को स्वतन्त्र नीति अपनाने में समर्थ बनाना

(ख) किसी भी सैन्य संगठन में शामिल होने से इंकार करना

(ग) वैश्विक मामलों में तटस्थता की नीति अपनाना

(घ) वैश्विक आर्थिक असमानता की समाप्ति पर ध्यान केन्द्रित करना।

उत्तर– () वैश्विक मामलों में तटस्थता की नीति अपनाना।

 

प्रश्न 3. नीचे महाशक्तियों द्वारा बनाए सैन्य संगठनों की विशेषता बताने वाले कुछ कचन दिए गए हैं। प्रत्येक कथन के सामने सही या गलत का चिह्न लगाएँ।

(क) गठबन्धन के सदस्य देशों को अपने भू-क्षेत्र में महाशक्तियों के सैन्य अड्डे के लिए स्थान देना जरूरी था

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(ख) सदस्य देशों को विचारधारा और रणनीति दोनों स्तरों पर महाशक्ति का समर्थन करना था

(ग) जब कोई राष्ट्र किसी एक सदस्य देश पर आक्रमण करता था तो इसे सभी सदस्य देशों पर आक्रमण समझा जाता था

(घ) महाशक्तियाँ सभी सदस्य देशों को अपने परमाणु हथियार विकसित करने में मदद करती थीं।

उत्तर- (क) सही, (ख) सही, (ग) सही, (घ) गलत ।

 

प्रश्न 4. नीचे कुछ देशों की एक सूची दी गई है। प्रत्येक के सामने लिखें कि वह शीतयुद्ध के दौरान किस गुट से जुड़ा था?

(क) पोलैंड, (ख) फ्रांस, (ग) जापान, (घ) नाइजीरिया, (ङ) उत्तरी कोरिया, (च) श्रीलंका ।

उत्तर– (क) पोलैंड-साम्यवादी गुट (सोवियत संघ)

(ख) फ्रांस-पूँजीवादी गुट (संयुक्त राज्य अमेरिका)

(ग) जापान-पूँजीवादी गुट (संयुक्त राज्य अमेरिका)

(घ) नाइजीरिया – गुट निरपेक्ष आन्दोलन

(ङ) उत्तरी कोरिया साम्यवादी गुट (सोवियत संघ)

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(च) श्रीलंका-गुट निरपेक्ष आन्दोलन।

 

प्रश्न 5. शीत युद्ध से हथियारों की होड़ और हथियारों पर नियन्त्रण ये दोनों ही प्रक्रियाएँ पैदा हुई। इन दोनों प्रक्रियाओं के क्या कारण थे?

         उत्तर–   दूसरे विश्व युद्ध के बाद दो महाशक्तियों-संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ का प्रादुर्भाव हुआ। पूँजीवादी संयुक्त राज्य अमेरिका तथा साम्यवादी सोवियत संघ का महाशक्ति बनने की प्रतिस्पर्द्धा में परस्पर एक-दूसरे के खिलाफ उठ खड़े होना शीत युद्ध का कारण बना। शीतयुद्ध के दौरान पूँजीवादी तथा साम्यवादी दोनों ही गुटों के मध्य प्रतिस्पर्द्धा तथा परस्पर प्रतिद्वन्द्विता का अन्त न हो सका। परस्पर अविश्वास की परिस्थितियों में दोनों ही गठबन्धनों ने हथियारों का विपुल भण्डारण करते हुए लगातार युद्ध की तैयारियों की थीं।

पूँजीवादी तथा साम्यवादी गुट अपने-अपने अस्तित्व की सुरक्षा के लिए हथियारों के विपुल भण्डारण को परमावश्यक मानते थे। दोनों ही गुट परमाणु हथियारों से सम्पन्न थे तथा वे इसके प्रयोग के दुष्परिणामों से भी अच्छी प्रकार से सुपरिचित भी थे। संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ यह भी जानते थे कि यदि प्रत्यक्ष रूप से युद्ध हुआ तो इसके भयंकर परिणाम होंगे। दोनों ही महाशक्तियों में से किसी के भी विश्व विजेता बनने की सम्भावनाएँ काफी न्यूनतम थीं क्योंकि दोनों ही गुटों के पास पर्याप्त मात्रा में परमाणु बमों का भण्डारण था। अतः दोनों ही महाशक्तियों ने हथियारों पर प्रभावी नियन्त्रण के लिए अस्त्र-शस्त्रों की प्रतिस्पर्द्धा को समाप्त करने के प्रयास किए। हालांकि पारस्परिक अवरोध की स्थिति ने युद्ध तो नहीं होने दिया लेकिन यह स्थिति पारस्परिक प्रतिद्वन्द्विता पर रोक न लगा सकी।

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प्रश्न 6. महाशक्तियाँ छोटे देशों के साथ सैन्य गठबन्धन क्यों रखती थीं? तीन कारण बताइए।

उत्तर– छोटे देशों के साथ महाशक्तियाँ निम्नलिखित कारणों की वजह से सैन्य गठबन्धन रखती थीं-

  1. भूक्षेत्र – महाशक्तियाँ (अमेरिका तथा सोवियत संघ इन छोटे देशों के यहाँ अपने-अपने हथियारों की बिक्री करती थीं तथा इन देशों में अपने सैन्य अड्डे स्थापित करके सैन्य गतिविधियों का संचालन करती थीं।
  2. महत्त्वपूर्ण संसाधनों को प्राप्त करना छोटे देशों से महाशक्तियों को तेल तथा खनिज पदार्थ इत्यादि मिलते थे।
  3. जासूसी केन्द्र दोनों महाशक्तियाँ छोटे देशों में अपने ठिकाने बनाकर परस्पर एक-दूसरे गुट की जासूसी करती थीं।

 

प्रश्न 7. कभी-कभी कहा जाता है कि शीतयुद्ध सीधे तौर पर शक्ति के लिए संघर्ष था और इसका विचारधारा से कोई सम्बन्ध नहीं था। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? अपने उत्तर के समर्थन में एक उदाहरण दें।

उत्तर– दूसरे विश्व युद्ध के पश्चात् अलग-अलग विचारधाराओं वाली दो महाशक्तियों संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ का प्रादुर्भाव हुआ। तत्कालीन परिस्थितियों में किसी भी देश के लिए एकमात्र विकल्प था कि वह अपनी सुरक्षा हेतु किसी एक महाशक्ति के साथ जुड़े।

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शीतयुद्ध प्रत्यक्ष रूप से शक्ति के लिए संघर्ष था जिसका विचारधारा से कोई सम्बन्ध नहीं था। हम उक्त कथन से पूर्णतया सहमत नहीं हैं क्योंकि विश्व के साम्यवादी विचारधारा के समर्थक देश जहाँ सोवियत संघ के गुट में शामिल हुए वहीं पश्चिमी देश जिनकी विचारधारा पूँजीवादी थी वे संयुक्त राज्य अमेरिका के गुट में सम्मिलित हुए। 1990 में सोवियत संघ के विघटन के साथ ही शीतयुद्ध समाप्त हो गया तथा एक विचारधारा का भी पतन हो गया।

 

प्रश्न 8. शीत युद्ध के दौरान भारत की अमरीका और सोवियत संघ के प्रति विदेश नीति क्या थी? क्या आप मानते हैं कि इस नीति ने भारत के हितों को आगे बढ़ाया ?

उत्तर –  भारत ने शीत युद्ध के दौरान स्वयं को दोनों गुटों से दूर रखते हुए नव स्वतन्त्रता प्राप्त देशों का किसी भी गुट में सम्मिलित होने का विरोध किया। अपनी इस नीति के क्रियान्वयन के लिए भारत ने गुट निरपेक्षता की नीति का अनुसरण किया। भारत ने गुट निरपेक्ष आन्दोलन के नेतृत्वकर्त्ता के रूप में शीतयुद्ध के दौरान अमेरिका तथा सोवियत संघ के प्रति अपनी विदेश नीति के अन्तर्गत निम्न भूमिका का प्रभावी निवर्हन किया-

  1. हालांकि गुट निरपेक्ष नीति के अन्तर्गत भारत ने स्वयं को दोनों ही महाशक्तियों की गुटबन्दी से दूर रखा, लेकिन शीतयुद्ध कालीन प्रतिद्वन्द्विता की जकड़ कमजोर करने हेतु अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में सक्रिय रूप से प्रभावी हस्तक्षेप करने में किसी प्रकार की कमी भी नहीं की थी।
  2. भारत ने अमेरिका तथा सोवियत संघ गुटों के बीच विद्यमान मतभेदों को दूर करने का प्रयास किया तथा मतभेदों को पूर्ण युद्ध का रूप लेने से भी रोका।
  3. भारतीय राजनयिकों तथा नेतृत्वकर्त्ताओं का उपयोग प्रायः शीतयुद्ध के दौर के प्रतिद्वन्द्वियों के बीच संवाद स्थापित करने एवं मध्यस्थता करने के लिए भी हुआ। उदाहरणार्य – 1950 के दशक के शुरू में कोरियाई युद्ध के दौरान ऐसा ही हुआ था। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि भारत ने गुट निरपेक्ष आन्दोलन में सम्मिलित देशों को भी इस प्रकार के मध्यस्थता के कार्यों में संलग्न रखा था।

4. शीतयुद्ध के दौरान भारत ने उन क्षेत्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों को भी सक्रिय किया जो अमेरिका एवं सोवियत संघ के गुट से जुड़े नहीं थे। तत्कालीन भारतीय प्रधानमन्त्री पण्डित नेहरू ने स्वतन्त्र एवं परस्पर सहयोगी देशों के एक सच्चे ‘राष्ट्र कुल’ पर अटूट विश्वास रखा जिससे वह शीतयुद्ध को समाप्त करने के प्रयास में एक सकारात्मक भूमिका का निवर्हन कर सके ।

हम स्पष्ट रूप से मानते हैं कि भारत द्वारा अपनाई गई गुट निरपेक्ष नीति ने भारतीय हितों को आगे बढ़ाया। इस नीति की वजह से ही हम ऐसे फैसले ले सके जिससे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय हितों की पूर्ति हो सके भारत सदैव ऐसी स्थिति में रहा कि यदि कोई एक महाशक्ति हमारे हितों का विरोध करे तो दूसरी महाशक्ति देश को सहयोग करने हेतु तत्पर रहे। उक्त से स्पष्ट है कि शीतयुद्ध के दौरान भारत अपने हितों के लिए निरन्तर सजग रहा।

 

प्रश्न 9. गुटनिरपेक्ष आन्दोलन को तीसरी दुनिया के देशों ने तीसरे विकल्प के रूप में समझा। जब शीत युद्ध अपने शिखर पर था तब इस विकल्प ने तीसरी दुनिया के देशों के विकास में कैसे मदद पहुँचाई ?

 

उत्तर- शीत युद्ध के कारण विश्व दो प्रतिद्वन्द्वी गुटों में विभक्त था। इस परिस्थिति में गुट निरपेक्ष आन्दोलन ने एशिया, अफ्रीका तथा लातिनी अमेरिका के नवस्वतन्त्र देशों के समर्थ एक तीसरा विकल्प प्रस्तुत किया। यह विकल्प दोनों महाशक्तियों के गुटों से अलग रहने अर्थात् गुट निरपेक्षता का था। इस नीति का यह आशय कदापि न था कि गुट निरपेक्ष आन्दोलन से जुड़े देश अपने आपको अन्तर्राष्ट्रीय घटनाक्रम से पृथक् रखते थे अथवा तटस्थता का परिपालन करते थे। गुट निरपेक्षता का अभिप्राय पृथकतावाद न होकर अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में सक्रिय रहने का आन्दोलन है। सर्वविदित है कि तीसरे विश्व के देशों के विकास में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की महती भूमिका है।

शीत युद्ध के दौरान गुट निरपेक्ष आन्दोलन की सदस्यों के विकास में भूमिका

शीत युद्ध के दौरान गुट निरपेक्ष आन्दोलन की अपने सदस्य देशों के विकास में महत्ती भूमिका रही जिसे संक्षेप में निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-

  1. गुट निरपेक्ष आन्दोलन में सम्मिलित अधिकांश देशों को ‘अल्पविकसित देश’ की श्रेणी में रखा गया, जिनके समक्ष प्रमुख चुनौती देश का आर्थिक विकास तथा निर्धनता से जन- साधारण को मुक्ति दिलाना था।
  2. उक्त दृष्टिकोण से नव आर्थिक व्यवस्था की धारणा का प्रादुर्भाव हुआ।
  3. धीरे-धीरे समय के साथ-साथ गुट निरपेक्षता की प्रकृति में परिवर्तन हुआ तथा इसमें आर्थिक मुद्दों को और अधिक महत्त्व दिया जाने लगा।
  4. 1961 के बेलग्रेड सम्मेलन में आर्थिक मुद्दे अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं थे। 1970 के दशक के मध्य तक आर्थिक मुद्दे प्रमुख रूप से उठने लगे। इस प्रकार गुट निरपेक्ष आन्दोलन एक आर्थिक दबाव समूह बन गया।
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उक्त से स्पष्ट है कि तीसरे विश्व के देशों को आर्थिक तथा तकनीकी दृष्टिकोण से शक्ति सम्पन्न बनाने में तथा सभी नए स्वतन्त्र देशों को अपनी-अपनी विदेश नीति निर्धारित करने में गुट निरपेक्ष आन्दोलन ने उपयोगी भूमिका का निवर्हन किया।

 

प्रश्न 10. ‘गुट निरपेक्ष आन्दोलन अब अप्रासंगिक हो गया है। आप इस कथन के बारे में क्या सोचते हैं? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क प्रस्तुत कीजिए।

 

उत्तर– हमारा मानना है कि गुट निरपेक्ष आन्दोलन वर्तमान परिस्थितियों में भी प्रासंगिक है। सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् विश्व एक ध्रुवीय बन चुका है। यदि गुट निरपेक्ष देश परस्पर मिलकर कार्य करें तो वे एक शक्ति के रूप में उभर सकते हैं। आन्दोलन के अनुयायी देश संगठित होकर एक ध्रुवीय विश्व की चुनौतियों का डटकर मुकाबला करने में सक्षम हैं।

नवोदित राष्ट्रों का राजनीतिक एवं आर्थिक विकास परस्पर एक-दूसरे के सहयोग पर ही निर्भर है। वर्तमान अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में अमेरिकी दबाव से मुक्ति हेतु गुट निरपेक्ष आन्दोलन के सदस्यों का आपसी सहयोग परमावश्यक हो गया है। गुट निरपेक्षता की नीति जहाँ सदस्य देशों को सुरक्षा प्रदान करती है वहीं विश्व में निःशस्त्रीकरण की आवश्यकता पर भी विशेष जोर देती है।

गुट निरपेक्ष आन्दोलन विश्व में विद्यमान असमानताओं से निपटने के लिए एक वैकल्पिक विश्व व्यवस्था कायम करने तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था को लोकतन्त्रधर्मी बनाने के संकल्प पर टिका है। अतः शीतयुद्ध की समाप्ति के पश्चात् भी इसके सदस्य देशों की निरन्तर बढ़ती हुई संख्या यह दर्शाती है कि वर्तमान में ही नहीं बल्कि भविष्य में भी इसकी प्रासंगिकता यू ही बनी रहेगी।

 

परीक्षोपयोगी अन्य प्रश्नोत्तर ( वस्तुनिष्ठ प्रश्न )

बहु-विकल्पीय

 

  1. सर्वप्रथमशीत युद्धशब्द का प्रयोग किया गया था?

(क) प्रो. लिपमैन द्वारा            (ग) मार्गेनथाऊ द्वारा

(ख) बर्नार्ड बारुच द्वारा        (घ) हैनरी ट्रुमैन द्वारा।

 

  1. शीत युद्ध का कारण था-

(क) युद्धकालीन सन्देह एवं अविश्वास            (ख) सोवियत संघ की शक्ति में वृद्धि

(ग)  सैद्धान्तिक मतभेद                                (घ) ये सभी।

 

  1. अमेरिका का यू-2 विमान था-

(क)एक यात्री विमान                   (ग)  एक जासूसी विमान

(ख) एक मालवाहक विमान        (घ) एक बमवर्षक विमान।

 

  1. निम्नांकित में शीत युद्ध का प्रभाव नहीं है-

(क) शस्त्रीकरण की दौड़                        (ख) सैन्य सन्धियों का अस्तित्व

(ग) लोक कल्याणकारी कार्यों में बढ़ोत्तरी (घ) आणविक युद्ध की सम्भावना ।

 

5. शीत युद्ध का प्रमुख साधन था-

(क) जासूसी करना                  (ख) प्रचार

(ग) अपने समर्थक बढ़ाना          (घ) ये सभी।

 

6. नाटो की स्थापना हुई थी-

(क) 1945 में                 (ख) 1949 में

(ग) 1956 में                  (घ) 1990 में।

 

7. वारसा सन्धि का स्थापना वर्ष है-

1955

(ख) 1956

(घ) 1975

 

8. क्यूबा का मिसाइल संकट उत्पन्न हुआ था-

(क) अप्रैल 1945 से 1990 तक           (ख) दिसम्बर 1960 से 1961 तक

(ग) जून 1958 से 1962 तक              (घ)  अप्रैल 1961 से 1962 तक।

 

9. पाकिस्तान के किस गुट में सम्मिलित होने पर पण्डित नेहरू ने तीव्र आलोचना की थी ?

(क) नाटो                                         (ख) आजंस सन्धि

(ग) रियो सन्धि                                  (घ)  सीटो

 

10. वाशिंगटन तथा क्रेमलिन में टेलीफोन एवं रेडियो का सीधा सम्पर्क स्थापित करने का समझौता (हॉटलाइन समझौता हुआ था-

(क) 1960 में                                     (ख) 1963 में

(ग) 1964 में                                     (घ)  1965 में।

 

11. नए शीत युद्ध का कारण था-

(क) स्टारवार्स योजना                          (ख) अन्तरिक्ष हथियारों की होड़

(ग) रीगन की विदेश नीति में बदलाव    (घ) ये सभी।

 

12. शीत युद्ध की समाप्ति हुई-

(क) 1985 में                                   (ख)  1980 में

(ग) 1991 के अन्त में                        (घ) 1995 में।

 

13.  गुट निरपेक्ष आन्दोलन के प्रथम सम्मेलन के समय इसके सदस्य देशों की संख्या थी-

(क) 11                                         (ख)    25

(ग) 76                                          (घ) 101.

 

14. अभी तक कितने गुट निरपेक्ष शिखर सम्मेलन आयोजित किए जा चुके हैं?

(क) 15                                  (ग) 17

(ख)  16                                  (घ) 18

 

15. ‘नाम’ के किस शिखर सम्मेलन में अफ्रीकी कोष की स्थापना का निर्णय किया गया ?

(क) पहले               (ग) छठवें

(ग) तीसरे               (घ) आठवें ।

उत्तर- 1. (ख) बर्नार्ड बारुच द्वारा, 2. (घ) ये सभी, 3. (ग) एक जासूसी विमान, 4. (ग) लोक कल्याणकारी कार्यों में बढ़ोत्तरी, 5. (घ) ये सभी, 6. (ख) 1949 में, 7. (क) 1955, 8. (घ) अप्रैल 1961 से 1962 तक, 9. (घ) सीटो, 10. (ख) 1963 में, 11. (घ) ये सभी 12. (ग) 1991 के अन्त में, 13. (ख) 25, 14, (घ) 18, 15. (घ) आठवें ।

 

रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. पुराने शीत युद्ध का केन्द्र यूरोप था जबकि नए शीत युद्ध का ……………………. था।
  2. शीत युद्ध संघर्ष करने की नवीन प्रविधि थी जो ……………. के उपरान्त विकसित हुई।
  3. दो गुटों के मध्य उत्पन्न ……………. ने शीत युद्ध को जन्म दिया था।
  4. सोवियत संघ ने अमरीकी कार्यवाहियों को अपने खिलाफ समझा, जिससे …………… भड़क उठा।
  5. शीत युद्ध का प्रथम दौर …………… तक माना जाता है।
  6. गुट निरपेक्षता की ……………….. समय-समय पर आयोजित शिखर सम्मेलनों से होती रहती है।
  7. गुट निरपेक्ष शिखर सम्मेलन में …………………….. भाग लेते है |
  8. वर्तमान अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में …………………… पर महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी आ गई है।
  9. वर्तमान निर्गुट आन्दोलन ………………………… हुए देशों के आर्थिक विकास पर बल दे रहा है।
  10. ……………….. का आशय विकासशील अथवा अल्पविकसित देशों का समूह है।

 

उत्तर- 1. एशिया, 2. द्वितीय विश्व युद्ध, 3. तनाव, 4. शीत युद्ध, 5. 1947-1953, 6. अभिव्यक्ति 7. शासनाध्यक्ष 8. निर्गुट आन्दोलन, 9. निर्धन एवं पिछड़े 10. तीसरी दुनिया

 

सत्य / असत्य

  1. शीत युद्ध एक वाक् युद्ध है जिसमें प्रचार का महत्त्व है।
  2. शीत युद्ध वास्तविक युद्ध न होकर युद्ध का वातावरण है।
  3. जीवनदर्शन अलग-अलग होने के कारण अमेरिका तथा सोवियत संघ द्वितीय विश्व युद्ध से पूर्व ही परस्पर एक-दूसरे के विरोधी थे।
  4. 1986 में अमेरिकी स्टार वार कार्यक्रम के खिलाफ सोवियत संघ ने कोई कार्यवाहीनहीं की थी।
  5. शीत युद्ध की प्रकृति कूटनीतिक युद्ध-सी है जो अत्यधिक उम्र होने पर सशस्त्र युद्ध को जन्म दे सकती है।
  6. शीत युद्ध ने एशिया तथा अफ्रीका में स्वतन्त्रता आन्दोलन को प्रोत्साहित किया।
  7. शीत युद्ध के कारण अन्तर्राष्ट्रीय पारस्परिक निर्भरता में काफी कमी हुई।
  8. शीत युद्ध ने संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यों में अवरोध पैदा किया था।
  9. शीत युद्ध के अन्त का मुख्य कारण सोवियत संघ में उभरता हुआ आर्थिक एवं राजनीतिक संकट था।
  10. बांडुंग मलेशिया का एक नगर है।
  11. हवाना शिखर सम्मेलन 2008 में डर्बन में हुआ।
  12. गुट निरपेक्ष देशों का 18वाँ शिखर सम्मेलन 25-26 अक्टूबर, 2019 को बाकू (अजरबेजान) में आयोजित हुआ।

 

उत्तर- 1. सत्य, 2. सत्य, 3. सत्य, 4. असत्य, 5. सत्य, 6. सत्य, 7. असत्य, 8. सत्य, 9. सत्य, 10. असत्य, 11. असत्य, 12. सत्य ।

 

जोड़ी मिलाइए

  1. शीत युद्ध का चरम बिन्दु           (i) 23 फरवरी, 1945
  2. आइवो जीमा की लड़ाई            (ii) व्यापक परीक्षण प्रतिबन्ध सन्धि
  3. एल. टी.बी.टी.                         (iii) गुट निरपेक्षता के सूत्रधार
  4. भारत, मिस्र तथा युगोस्लाविया  (iv) क्यूबा मिसाइल संकट
  5. सी.टी.बी.टी.                             (v) 10 अक्टूबर, 1963

Ans :       1.→ (iv), 2.→ (i), 3. → (v), 4. →→ (iii), 5. → (ii).

 

एक शब्द / वाक्य में उत्तर

  1. स्टारवास योजना कब घोषित की गई थी ?
  2. बर्लिन की दीवार किस वर्ष गिरी ?
  3. अमेरिका द्वारा जापान पर गिराए गए परमाणु बम का गुप्त नाम क्या था ?
  4. नाटो में कौन-कौन महत्त्वपूर्ण देश सम्मिलित थे?
  5. किस देश ने ‘नाटो’ में अमेरिकी नेतृत्व का विरोध किया था?
  6. किन्हीं चार गुट निरपेक्ष देशों के नाम लिखिए।
  7. वर्तमान में गुट निरपेक्ष आन्दोलन के पर्यवेक्षक देशों तथा संगठनों की संख्या कितनी है?

उत्तर- 1. 23 मार्च, 1983 को, 2. 1989, 3. लिटिल ब्वॉय तथा फैटमैन, 4. अमेरिकी, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मन तथा इटली, 5. फ्रांस, 6. भारत, मिस्र, श्रीलंका तथा जिम्बाब्वे, 7. 17 पर्यवेक्षक देश तथा 10 संगठन।

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12th Political Science Ncert Solution Sort and Long Ansewer

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

 

प्रश्न 1. शीत युद्ध किस प्रकार का युद्ध है?

उत्तर– शीत युद्ध एक ऐसा युद्ध है जिसका रणक्षेत्र मानव का मस्तिष्क है।

 

प्रश्न 2. शीत युद्ध किन साधनों से लड़ा जाता है

उत्तर– शीत युद्ध हथियारों से न लड़ा जाकर प्रतियोगिता, घृणा तथा दूसरों को नीचा दिखाने इत्यादि साधनों से लड़ा जाता है।

 

 प्रश्न 3. अन्तर्राष्ट्रीय पारस्परिक निर्भरता में वृद्धि का कारण बताइए।

उत्तर– शीत युद्ध के कारण अन्तर्राष्ट्रीय पारस्परिक निर्भरता में वृद्धि हुई।

 

प्रश्न 4. शीत युद्ध की समाप्ति की घोषणा किसने और कब की थी?

उत्तर– 5-6 जुलाई, 1990 को लन्दन में दो दिवसीय नाटो शिखर सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति बुश ने शीत युद्ध की समाप्ति की घोषणा की थी।

 

प्रश्न 5. सोवियत संघ तथा अमेरिका के बीच ह्वाइट हाउस समझौता कब हुआ था?

उत्तर– 16 जून, 1992 को।

 

प्रश्न 6. ‘NAM’ से आप क्या समझते हैं?

उत्तर– गुट निरपेक्ष आन्दोलन अथवा निर्गुट आन्दोलन।

 

प्रश्न 7. विश्व में गुट निरपेक्ष आन्दोलन का प्रभावशाली नेतृत्व किसने किया?

उत्तर– विश्व में गुट निरपेक्ष आन्दोलन का प्रभावशाली नेतृत्व भारत ने किया।

 

प्रश्न 8. गुटनिरपेक्ष आन्दोलन से जुड़े नए देशों के नाम लिखिए।

उत्तर– अजरबेजान तथा फिजी गुट निरपेक्ष आन्दोलन के नए देश हैं।

 

प्रश्न 9. गुट निरपेक्ष राष्ट्रों की दो पहचान लिखिए।

उत्तर–  (1) गुट निरपेक्ष राष्ट्र शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व पर आधारित एक स्वतंत्र विदेश नीति का अनुसरण करते हुए किसी भी शक्ति खेमे से जुड़ा नहीं होता, तथा (2) गुट निरपेक्ष राष्ट्र की दूसरी पहचान है कि वह सदैव राष्ट्रीय स्वतन्त्रता आन्दोलनों का समर्थन करता है।

 

प्रश्न 10. 16वाँ गुट निरपेक्ष सम्मेलन कब और कहाँ हुआ ?

उत्तर– 16वाँ गुट निरपेक्ष सम्मेलन 17-18 सितम्बर, 2016 को पोरलामार (वेनेजुएला) में हुआ था।

 

प्रश्न 11. किस देश में दो बार गुट निरपेक्ष शिखर सम्मेलन आयोजित किए जा चुके हैं ?

उत्तर– युगोस्लाविया की राजधानी बेलग्रेड तथा क्यूबा की राजधानी हवाना में दो बार निर्गुट शिखर सम्मेलन आयोजित किए जा चुके हैं।

 

Ncert 12th Political Science ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) –

 

प्रश्न 1. शीत युद्ध से आप क्या समझते हैं ? यह कब प्रारम्भ हुआ ? संक्षेप में लिखिए। अथवा शीत युद्ध से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर– शीत युद्ध एक ऐसा युद्ध है जिसका रणक्षेत्र मानव मस्तिष्क होता है। यह हथियारों से नहीं लड़ा जाकर प्रतियोगिता, घृणा तथा दूसरों को नीचा दिखाकर लड़ा जाता है। शीत युद्ध में किसी पक्ष के एक व्यक्ति की हत्या रणक्षेत्र में नहीं होती, बल्कि भयानक सर्वनाश एवं प्रत्यक्ष रूप से करोड़ों लोगों के दुखद अन्त की सम्भावना उत्पन्न हो जाती है। यह विभिन्न देशों में सम्बन्धों को घृणा तथा वैमनस्य से विकृत कर देता है।

द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति पर दुनिया में प्रथम स्तर की दो महाशक्तियाँ- सोवियत संघ तथा संयुक्त राज्य अमेरिका रह गई थीं। अमेरिका, ब्रिटेन एवं अन्य पश्चिमी यूरोपियन शक्तियों ने मिलकर ‘पश्चिमी खेमा’ तथा सोवियत संघ एवं उसकी पूर्वी यूरोपियन मित्र शक्तियों ने मिलकर ‘पूर्वी खेमा’ बना लिया। इन दोनों खेमों अर्थात् गुटों के बीच परस्पर विरोध विद्यमान रहा और इस प्रकार शीत युद्ध की शुरुआत हो गयी।

 

प्रश्न 2. शीत युद्ध के अर्थ एवं प्रकृति को समझाइए ।

उत्तर– शीत युद्ध का अर्थ राष्ट्रों के मध्य तनाव है। इसमें प्रत्येक पक्ष कुछ ऐसी नीतियों पर चलता है जिनका लक्ष्य स्वयं अपने आप को मजबूत बनाना तथा विपक्षी को अधिक से अधिक कमजोर करना होता है इसमें वास्तविक युद्ध नहीं होता है।

शीत युद्ध की प्रकृति द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान विकसित हुई। शीत युद्ध के दौरान दोनों महाशक्तियों (अमेरिका तथा सोवियत संघ) ने नए-आजाद राष्ट्रों को अपने-अपने गुट में मिलाने हेतु हथियार एवं आर्थिक सहायता प्रत्यक्ष रूप से उपलब्ध कराई। इन्होंने सामूहिक सुरक्षा प्रणाली को अपनाते हुए सैनिक सन्धियाँ तथा विभिन्न क्षेत्रीय संगठनों का गठन भी काफी तेजी से किया। शीत युद्ध के दौरान सुरक्षा परिषद् में वीटो (निषेधाधिकार) का प्रयोग करते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ को निर्जीव संस्था बनाकर महाशक्तियाँ अपने स्वार्थों की पूर्ति करती रहीं। शीत युद्ध की प्रकृति की वजह से नाटो, सीटो तथा वारसा पैक्ट इत्यादि निर्मित करके ध्रुवीकरण किया जाने लगा था।

 

प्रश्न 3. शीत युद्ध के सामान्य कारणों को लिखिए।

                                         अथवा

शीत युद्ध के कोई चार कारण लिखिए।

उत्तर– शीत युद्ध के सामान्य कारणों को संक्षेप में निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-

  1. शीत युद्ध का सामान्य कारण संघर्षो की अनिवार्यता था।
  2. विचारधाराओं का टकराव भी शीत युद्ध का सामान्य कारण था।
  3. शीत युद्ध को उदित करने में सोवियत संघ तथा पश्चिमी राष्ट्रों के पारस्परिक सन्देह एवं अविश्वास ने भी निर्णायक भूमिका का निर्वहन किया था।
  4. विजित प्रदेशों पर नियन्त्रण की इच्छा भी शीत युद्ध का सामान्य कारण रही।
  5. परस्पर विरोधी प्रचार भी शीत युद्ध का सामान्य कारण रहा।

 

प्रश्न 4. “सोवियत संघ के अमेरिका विरोधी प्रचार ने शीत युद्ध को भड़काने में अहम् भूमिका का निर्वहन किया था।“ संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।

उत्तर–   सोवियत संघ के शासकीय प्रचार माध्यमों ने अमेरिका के खिलाफ प्रचार किया उन्होंने अमेरिकी नीतियों की खुलकर आलोचना की थी। संयुक्त राष्ट्र संघ में सोवियत प्रतिनिधि विशिन्सकी ने संयुक्त राज्य अमेरिका की निन्दा करते हुए कहा था कि, “कुछ देशों, जिनमें अमेरिका प्रमुख है, की युद्धप्रियता तथा विस्तारवादी नीतियों से जो युद्ध की मनोवृत्ति पैदा हुई है, वह लगातार विस्तृत होती जा रही है।“ इसी प्रकार सोवियत समाचारपत्र ‘तास’ एवं ‘ इजावेस्तिया’ ने भी अमेरिका के खिलाफ जहर उगलने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी थी।

सोवियत संघ के इस प्रचार अभियान से अमेरिकी सरकारी एवं गैर-सरकारी क्षेत्रों में आक्रोश भड़क उठा। इसके प्रत्युत्तर में संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपने यहाँ बढ़ती हुई साम्यवादी गतिविधियों पर अंकुश लगाना शुरू कर दिया, जबकि दूसरी ओर सोवियत संघ ने अमेरिका में साम्यवादी गतिविधियों को प्रेरणा दी। सोवियत संघ ने अमेरिकी कार्यवाहियों को अपने खिलाफ समझा तथा इस प्रकार दोनों की बीच शीत युद्ध भड़क उठा।

 

प्रश्न 5. गुट निरपेक्षता का आशय स्पष्ट करते हुए बताइए कि यह नीति स्थिर है अथवा विकासशील ।

उत्तर–  गुट निरपेक्षता शक्ति गुटों से अलग रहने की नीति है। इस नीति पर चलने वाला देश अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में किसी शक्ति गुट अथवा खेमे के साथ बँधा हुआ नहीं है। उसका अपना सत्य, न्याय, औचित्य एवं शान्ति पर आधारित स्वतन्त्र मार्ग है। अन्य शब्दों में कहा जा सकता है कि गुट निरपेक्ष देश अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में किसी का पिछलग्गू नहीं होता। वह राष्ट्रीय हितों को दृष्टिगत रखते हुए सत्य, न्याय, औचित्य तथा विश्व शान्ति की प्रवृत्तियों का समर्थन करता है।

गुट निरपेक्षता एक स्थिर नीति न होकर लगातार विकासशील नीति है। इसे अपनाते हुए सम्बद्ध देश द्वारा राष्ट्रीय हित तथा विश्व की परिवर्तित हुई परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए अपने विचार एवं कार्य शैली में बदलाव किया जा सकता है। पिछले एक दशक से गुट निरपेक्ष आन्दोलन के अन्तर्गत आर्थिक विकास पर अधिक जोर दिया जा रहा है।

 

प्रश्न 6. गुट निरपेक्ष आन्दोलन के प्रमुख उद्देश्यों को संक्षेप में समझाइए ।

उत्तर– गुट निरपेक्ष आन्दोलन के प्रमुख उद्देश्यों को संक्षेप में अग्रलिखित प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

  • एशिया, अफ्रीका तथा नव स्वतन्त्र एवं विकासशील देशों को सशक्त कर उनकी आवाज को विश्व स्तर पर उठाना,
  • प्रत्येक प्रकार के साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद का विरोध करना तथा इसकी समाप्ति के लगातार प्रयास करते रहना,
  • विश्व की समस्त समस्याओं के शान्तिपूर्ण समाधान तलाशने पर बल देना,
  • संयुक्त राष्ट्र संघ का समर्थन करते हुए इस मंच पर पारस्परिक एकता को प्रदर्शित करना, तथा
  • नवीन अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था हेतु संगठनात्मक प्रयास करना।

 

प्रश्न 7. गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की संस्थागत संरचना लिखो।

उत्तर– इसके दो उपसंगठन- (1) समन्वय ब्यूरो तथा (2) सम्मेलन हैं, जिन्हें संक्षेप में निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

  1. समन्वय व्यूरो – इसका कार्य गुट निरपेक्ष देशों में सतत् विचार-विमर्श तथा समन्वय – बनाए रखना है। मार्च 1983 के नई दिल्ली शिखर सम्मेलन में इसकी सदस्य संख्या बढ़ाकर 66 कर दी गयी। यहाँ उल्लेखनीय है कि इन सदस्यों का चुनाव होता है।
  2. सम्मेलन – गुटनिरपेक्ष नीति पर चलने वाले राष्ट्रों के द्विस्तरीय सम्मेलन- (1) विदेश मन्त्रियों का सम्मेलन तथा (2) शिखर सम्मेलन होते हैं जहाँ विदेश मन्त्री स्तर के शिखर सम्मेलनों में गुट निरपेक्ष देशों के विदेश मन्त्री हिस्सा लेते हैं, वहीं शिखर सम्मेलन में। इन देशों के प्रमुख अर्थात् राष्ट्राध्यक्ष भाग लेते हैं। शिखर सम्मेलन में चार प्रकार- पूर्ण सदस्य, पर्यवेक्षक सदस्य, गैर-पर्यवेक्षक सदस्य तथा अतिथि सदस्य हिस्सा लेते हैं। प्रति तीन वर्ष की समयावधि के पश्चात् शिखर सम्मेलन का आयोजन किया जाता है।

 

Ncert 12th Political Science ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) –

 

प्रश्न 1. शीत युद्ध की विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर–                      शीत युद्ध की विशेषताएँ

शीत युद्ध की प्रमुख विशेषताओं को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

  • यह द्वितीय विश्व युद्ध के नकारात्मक परिणामस्वरूप पैदा हुआ वाकयुद्ध था जिसमें बदले की भावना सर्वोपरि थी।
  • शीत युद्ध दो प्रतिद्वन्द्वी महाशक्तियों के मध्य तनावपूर्ण स्थिति थी जो मूल रूप से राजनीति युद्ध का स्वरूप धारण किए थी।
  • शीत युद्ध पूँजीवादी तथा साम्यवादी विचारधाराओं का समावेश था जिसमें प्रत्यक्ष संघर्ष माना जाता है।
  • शीत युद्ध में जासूसी, गोपनीय संधियाँ, सैनिक समझौते तथा प्रादेशिक गठबन्धन करके शक्ति का प्रसार करना सर्वोपरि है।
  • अन्तर्राष्ट्रीय समुदायों के राज्यों की राजनीतिक तथा गैर-राजनीतिक समस्याएँ शीत युद्ध रूपी प्रयोगशाला में हल की जाती है। (6) शीत युद्ध में परस्पर एक-दूसरे के विरुद्ध अधिक-से-अधिक झूठा प्रचार करने को कोई सीमा नहीं होती है।

 

प्रश्न 2. शीत युद्ध की उत्पत्ति के प्रमुख कारणों की विवेचना कीजिए।

उत्तर-                 शीत युद्ध की उत्पत्ति के कारण

शीत युद्ध की उत्पत्ति के लिए मुख्यतः निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे-

  • युद्धकालीन सन्देह एवं अविश्वास यूरोपीय राष्ट्रों को साम्यवादी क्रान्ति की सफलता से गहरा आघात लगा। सोवियत सरकार पाश्चात्य देशों के शत्रुतापूर्ण व्यवहार को विस्तृत नहीं कर पायी। इसी प्रकार सोवियत संघ की पूँजीवाद विरोधी नीतियों तथा समस्त विश्व में साम्यवाद के प्रसार के लक्ष्य से पाश्चात्य शक्तियाँ रूस से भयभीत थीं और सदैव सन्देह की दृष्टि से देखती थीं।
  • सैद्धान्तिक मतभेद शीत युद्ध को विकसित करने में परस्पर दो विरोधी विचारधाराओं का भी योगदान रहा। जहाँ अमेरिकी पूँजीवादी उदार लोकतन्त्रात्मक देश था, वहीं इसके ठीक विपरीत सोवियत संघ साम्यवादी एकदलीय व्यवस्था वाला देश था।
  • अमेरिका विरोधी प्रचार– द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् सोवियत समाचार पत्रों एवं रेडियो ने अमेरिका के खिलाफ जबरदस्त प्रचार अभियान चलाया जिससे अमेरिका में व्यापक जन असन्तोष व्याप्त हो गया।
  • अणु बमों की गोपनीयता अमेरिका ने अणु बम के निर्माण के सम्बन्ध में इंग्लैण्ड की तो अवगत करा दिया था लेकिन सोवियत संघ से इस बात को गुप्त रखा था। इसी प्रकार जापान के हिरोशिमा एवं नागासाकी नगरों पर अणु बम की वर्षा करते समय अमेरिका ने इंग्लैण्ड से परामर्श किया था लेकिन इस सन्दर्भ में सोवियत संघ की पूर्णरूपेण अवहेलना की थी। सोवियत संघ ने इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाते हुए अपना अपमान समझा था।
  • सोवियत संघ का बारबार निषेधाधिकार का प्रयोग सोवियत संघ ने पाश्चात्य देशों (विशेषतया अमेरिका) के प्रस्तावों एवं नीतियों के खिलाफ बार-बार वीटो का प्रयोग करके उसके प्रस्तावों को रद्द कराया। इससे पाश्चात्य राष्ट्र सोवियत संघ के कट्टर विरोधी बन गए।
  • लैण्ड – लीज समझौते का समापन – लैण्ड लीज समझौते के आधार पर पाश्चात्य देशों द्वारा सोवियत संघ की आर्थिक मदद की जाती थी, जिसे पाश्चात्य शक्तियों ने अचानक रोक दिया। इसने शीत युद्ध को भड़काने में काफी योगदान दिया।

 

प्रश्न 3. अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों पर शीत युद्ध के पाँच प्रभावों को लिखिए

उत्तर-                  शीत युद्ध का प्रभाव अथवा परिणाम

अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर शीत युद्ध का निम्नांकित प्रभाव पड़ा था-

  • विश्व दो गुटों में विभक्त – शीत युद्ध की वजह से विश्व राजनीति द्विध्रुवीय हो गई। सोवियत संघ तथा संयुक्त राज्य अमेरिका अलग-अलग गुटों का नेतृत्व करने लगे।
  • आतंक एवं अविश्वास में वृद्धि – शीत युद्ध की वजह से देशों के बीच परस्पर अविश्वास, आतंक, तनाव तथा प्रतिस्पर्द्धा इत्यादि की भावना को पुष्पित एवं पल्लवित होने का अवसर मिला।
  • आणविक युद्धों का खतरा द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान प्रयुक्त किए गए आणविक हथियारों की विनाशलीला से दुनिया के सभी देश भयभीत हो गये थे। उन्हें यह भय सदैव सताता था कि शीत युद्ध में आणविक हथियारों को बनाने की प्रतिस्पर्द्धा शुरू हो गयी है। यदि इनको कभी प्रयोग करने की स्थिति बनी तो विश्व का महाविनाश हो जाएगा। यहाँ तक कि इनका निर्माणकर्ता भी शेष नहीं बचेगा।
  • शस्त्रीकरण की दौड़ तथा विश्व का यान्त्रिकीकरण शीत युद्ध की वजह से विश्व के अनेक देशों में हथियारों की अंधी दौड़ को बढ़ावा मिला, जिससे निःशस्त्रीकरण का मार्ग कठिन हो गया।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ की कमजोर स्थिति अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर शीत युद्ध का एक प्रभाव यह पड़ा कि इसकी वजह से संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थिति निर्बल हो गयी थी।
  • निर्गुट आन्दोलन को प्रोत्साहन शीत युद्ध के दुष्परिणामों से रक्षार्थ विश्व में निर्गुट अथवा गुट निरपेक्ष आन्दोलन का उदय हुआ।
  • सैन्य सन्धियों का अस्तित्व शीत युद्ध के दौरान नाटो, सीटो, सेण्टो तथा वारसा पैक्ट इत्यादि जैसी अनेक सैनिक सन्धियों की गई थीं, जिससे शीत युद्ध में उष्णता आ गई।

 

प्रश्न 4. प्राचीन एवं नवीन शीत युद्ध में मुख्यतया कौनकौन से अन्तर थे ? समझाइए ।

उत्तर–                  प्राचीन एवं नवीन शीत युद्ध में अन्तर (भेद)

1979 के अन्त में अफगानिस्तान में सोवियत हस्तक्षेप को अमेरिका द्वारा विश्व शान्ति हेतु खतरा बताया गया। इससे दोनों गुटों के मध्य एक नए शीत युद्ध को उदित कर दिया। संक्षेप में प्राचीन एवं नवीन शीत युद्ध के प्रमुख अन्तरों अथवा भेदों को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

  • प्राचीन शीत युद्ध की अपेक्षाकृत नवीन शीत युद्ध अधिक भयंकर था।
  • जहाँ प्राचीन शीत युद्ध का केन्द्र यूरोप था, वहीं नवीन शीत युद्ध का केन्द्र बिन्दु एशिया हो गया था।
  • चीन प्राचीन शीत युद्ध में सम्मिलित नहीं था, जबकि नवीन शीत युद्ध में उसने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी।
  • जहाँ प्राचीन शीत युद्ध में सोवियत संघ का मुकाबला सिर्फ अमेरिका से था, वहीं नवीन शीत युद्ध में उससे मुकाबला करने में अमेरिका का साथ चीन, ब्रिटेन तथा फ्रांस ने भी दिया था।
  • प्राचीन शीत युद्ध का ध्रुवीकरण नवीन शीत युद्ध में शिथिल पड़ गया तथा नवीन शीत युद्ध में चीन एवं फ्रांस के जुड़ जाने से शीत युद्ध की नीतियों में काफी बदलाव आए।
  • प्राचीन शीत युद्ध के दौरान दोनों महाशक्तियाँ परमाणु युद्ध की पक्षधर नहीं थी, क्योंकि वे मानती थीं कि इससे दोनों राज्यों का विनाश हो जायेगा जबकि नवीन शीत युद्ध के दौरान दोनों यह मानने लगे थे कि सीमित परमाणु युद्ध लड़कर उन्हें विजित किया जा सकता है।
  • प्राचीन शीत युद्ध स्टालिन द्वारा सोवियत संघ को अमेरिका के बराबर बनाने हेतु किया गया था, जबकि नवीन शीत युद्ध अमेरिका ने अपने हथियार उद्योग का विकास करने के लिए किया था।

 

प्रश्न 5. शीत युद्ध की शिथिलता के कारणों को समझाकर लिखिए।

उत्तर-               शीत युद्ध की शिथिलता के कारण

1947 से 1987 तक चले शीत युद्ध में शिथिलता आने के प्रमुख कारणों को संक्षेप में निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

  • उदारवादी विचारधाराएं – द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ तथा संयुक्त राज्य अमेरिका की विदेश नीति अत्यधिक कट्टर थी। बाद में स्टालिन तथा दुमैन के उत्तराधिकारियों की समझ में यह बात घर कर गई कि कट्टरपंथी विचारधारा से दोनों को लाभ के स्थान पर हानि ही उठानी पड़ेगी। अतः उन्होंने अपनी कट्टरपंथी नीतियों का त्याग करके उदारवादी दृष्टिकोण अपनाया, जिसने शीत युद्ध की शिथिलता में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
  • शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व – सोवियत संघ तथा संयुक्त राष्ट्र अमेरिकी नेताओं ने सह-अस्तित्व के सिद्धान्त को स्वीकार किया गोबच्योव तथा बुश ने जिओ तथा जीने दो के सिद्धान्त को उचित माना जिससे शीत युद्ध को घटाने में मदद मिली।
  • तटस्थता की राजनीति- विश्व राजनीति में चल रही नई लहर के फलस्वरूप सैनिक गुटों के देश भी तटस्थता का समर्थन करने लगे थे नाटो के लिए फ्रांस अधिक धनराशि देने का इच्छुक नहीं रहा था तथा वह अधिकांश मामलों में तटस्थ ही रहना चाहता था। इसी तरह सोवियत संघ का प्रभावी पूर्वी यूरोप भी सोवियत मिसाइल के प्रति इच्छुक नहीं रहा था। इससे शीत युद्ध की विचारधारा शिथिल पड़ गयी।
  • निर्गुट आन्दोलन का प्रभाव – द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पण्डित नेहरू, मार्शल – टोटो तथा नासिर की त्रिमूर्ति ने विश्व को शीत युद्ध की विभीषिका से बचाने हेतु गुट निरपेक्ष नीति का निर्माण किया। धीरे-धीरे इस गुट निरपेक्ष नीति ने एक आन्दोलन का स्वरूप धारण कर लिया तथा इसमें सम्मिलित होने वाले देशों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी होती चली गई, जिससे यह तृतीय विश्व के रूप में उभरकर सामने आया। इस प्रकार निर्गुट आन्दोलन भी शीत युद्ध में कमी का कारण बन गया।
  • यूरोप में परिवर्तन की लहर – जर्मनी को बर्लिन दीवार का टूटना, पोलैण्ड में राजनीतिक कट्टरता की कमी तथा चेकोस्लोवाकिया एवं युगोस्लाविया में बन्धुत्व की भावना का विकास इत्यादि अनेक ऐसी घटनाएँ घटित हुई कि यूरोप में राजनीतिक सोच में आमूल-चूल परिवर्तन आया। इससे शीत युद्ध को कम करने का वातावरण बना।
  • सोवियत संघ की आर्थिक कमजोरी – 1980 के पश्चात् सोवियत संघ भारी आर्थिक तंगी से गुजरने लगा। अन्तरिक्ष अनुसंधान की प्रतिस्पर्द्धा हथियारों के निर्माण पर विपुल धनराशि खर्च करने से सोवियत अर्थव्यवस्था चरमरा गई उसमें अब इतनी शक्ति न बची थी कि वह 1 पाश्चात्य देशों से शीत युद्ध लड़ सके।
  • सोवियत संघ का विघटन -1991 में भारी उथल-पुथल के बाद सोवियत संघ का विघटन हो गया। विश्व राजनीति के इस घटनाचक्र ने शीत युद्ध को विराम लगा दिया।

 

प्रश्न 6. गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की उपलब्धियों को लिखिए।

उत्तर-            गुट निरपेक्ष आन्दोलन की उपलब्धियाँ

संक्षेप में इस आन्दोलन की उपलब्धियों को अग्र प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

  • अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा को बढ़ावा – इस आन्दोलन की वजह से विश्व में अनेक तनावों तथा संघर्षो को रोकने में सफलता मिली है, जिससे अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा को बल मिला है। कोरिया युद्ध, इण्डोचीन संघर्ष, स्वेज युद्ध तथा क्यूबा संकट इत्यादि में। निरपेक्ष आन्दोलनकारी देशों ने संघर्ष को समाप्त करके समझौता कराने में महती भूमिका का निर्वहन किया है।
  • शीत युद्ध को समाप्त कराने में सहायक – शीत युद्ध के दौरान दोनों ही खेमों में तनाव बढ़ने से शस्त्रीकरण को अन्धी प्रतिस्पर्द्धा होने लगी थी, जो अघोषित युद्ध की स्थिति उत्पन्न कर रही थी। इस तनाव को कम करने में गुट निरपेक्ष आन्दोलन की उल्लेखनीय भूमिका रही थी।
  • निःशस्त्रीकरण में सहायक – गुट निरपेक्ष देशों ने निःशस्त्रीकरण तथा शस्त्र नियन्त्रण हेतु विचार-विमर्श की भूमिका का सफलतापूर्वक निर्वहन किया। भारत ने 1954 में आणविक हथियारों के परीक्षण पर जो प्रतिबन्ध के प्रस्ताव रखे थे, वे 1963 में आणविक परीक्षण सन्धि के रूप में फलीभूत हुए।
  • अपनी स्वतन्त्र नीति का अनुसरण – गुट निरपेक्ष आन्दोलन के सदस्य देशों ने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में अपनी स्वतन्त्र नीति का अनुसरण किया। अफगानिस्तान, कम्पूचिया वियतनाम तथा क्यूबा संकट के दौरान आन्दोलन के सदस्य देश भारत ने अपनी स्वतन्त्र विदेश नीति का परिचय दिया था।
  • आर्थिक सहयोग को बढ़ावा अविकसित राष्ट्रों के बीच आर्थिक सहयोग की आधारशिला रखने में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन को सफलता मिली। कोलम्बो शिखर सम्मेलन में एक आर्थिक घोषणा पत्र स्वीकारा गया। इसका मुख्य आधार गुट निरपेक्ष देशों के बीच अधिक से अधिक आर्थिक सहयोग करना था। वर्तमान में गुट निरपेक्ष आन्दोलन के सदस्य राष्ट्र नवीन अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था के मार्ग पर अग्रसर हैं।

 

 

प्रश्न 7. गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की असफलता पर एक लेख लिखिए।

उत्तर-               गुट निरपेक्ष आन्दोलन की असफलता अथवा कमजोरियाँ

गुट निरपेक्ष आन्दोलन की असफलताओं अथवा कमजोरियों को संक्षेप में निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

  • सिद्धान्तहीन आन्दोलन – गुट निरपेक्षता एक अवसरवादी एवं कार्य निकालने की नीति है, क्योंकि इस आन्दोलन से सम्बद्ध देश सिद्धान्तहीन है। साम्यवादी तथा पूँजीवादी गु के साथ अपने सम्बन्धों के सन्दर्भ में वे दोहरा मापदण्ड प्रयुक्त करते हैं। उनका ध्येय पश्चिमी एवं साम्यवादी दोनों गुटों से अधिकाधिक लाभ अर्जित करना है।
  • बाहरी आर्थिक एवं रक्षा सहायता पर निर्भरता – गुट निरपेक्षता आन्दोलन की एक बड़ी कमजोरी यह है कि इससे सम्बद्ध देश अपनी आर्थिक एवं रक्षा सम्बन्धी जरूरतों को पूरा करने के लिए अन्य देशों पर आश्रित है। सच्ची गुटनिरपेक्षता का आधार आर्थिक निर्भरता है। यदि कोई देश किसी प्रकार की सहायता हेतु अन्य राष्ट्रों पर आश्रित है, तो इसका आशय यह है कि उस देश की स्वतन्त्रता एवं गुटनिरपेक्षता को उसने दाँव पर लगा दिया है। उदाहरणार्थ- भारतीय नीतियाँ विश्व बैंक के दिशा निर्देशों के अनुरूप बनायी जाती है।
  • विभाजित आन्दोलन-गुट निरपेक्ष आन्दोलन अन्य देशों को संगठित करने के स्थान पर स्वयं ही विभाजित है। 1979 के हवाना सम्मेलन में यह तीन भागों में विभक्त था। यह विभाजन प्रमाणित करता है कि गुट निरपेक्ष आन्दोलन दिशाहीन है तथा महाशक्तियाँ इसे अपने हाथों में खिलौने की भाँति प्रयोग करती हैं।
  • ठोस योजना का अभाव- गुट निरपेक्ष आन्दोलन से सम्बद्ध देशों में मौलिक एकता का अभाव है। समृद्ध राष्ट्रों के शोषण के खिलाफ मोर्चाबन्दी करना तो काफी दूर रहा वे आपस मैं एक-दूसरे की मदद करने की कोई ठोस योजना भी निर्मित नहीं कर पाए हैं।
  • समकालीन अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था – शीत युद्ध की समाप्ति, सोवियत संघ के बिखराव, जर्मनी एकीकरण, वारसा सन्धि के समाप्त होने तथा नवीन राष्ट्रों के प्रादुर्भाव इत्यादि ने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक व्यवस्था में बदलाव की हवा चला दी है। चूँकि गुट निरपेक्ष आन्दोलन का प्रमुख कार्य विश्व को गुटों के विभाजन से मुक्त कराना था तथा अब विश्व में एकलध्रुवीय व्यवस्था है, तो ऐसी परिवर्तित स्थिति में यह आन्दोलन निरर्थक हो गया है। इसके आलोचकों का अभिमत है कि या तो गुट निरपेक्ष आन्दोलन को समाप्त करना पड़ेगा अथवा किसी नवीन आन्दोलन में परिवर्तित करना पड़ेगा।

 

प्रश्न 8. गुटनिरपेक्ष आन्दोलन में भारत का योगदान स्पष्ट कीजिए।

अथवा

भारत का गुट निरपेक्ष आन्दोलन में क्या योगदान है ?

 

उत्तर-                              गुट निरपेक्ष आन्दोलन में भारत का योगदान

 

गुट निरपेक्ष आन्दोलन के प्रथम शिखर सम्मेलन से लेकर 18वें शिखर सम्मेलन तक उसे नया आयाम देने में भारत ने जो कुछ किया है वह अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। भारत ने गुट- निरपेक्ष देशों का 7वाँ शिखर सम्मेलन नई दिल्ली में आयोजित किया, जिसमें 101 सदस्य देशों ने हिस्सा लिया था। इस सम्मेलन के घोषणा-पत्र में विकासशील तथा विकसित देशों की सामूहिक आत्मनिर्भरता को गति देने की वचनबद्धता घोषित की गई थी।

4-7 सितम्बर, 1989 को बेलग्रेड में आयोजित नौवें निर्गुट शिखर सम्मेलन में भारतीय दृष्टिकोण को सभी प्रमुख घोषणाओं में विशेष महत्त्व दिया गया था। इस दौरान तत्कालीन प्रधानमन्त्री राजीव गाँधी द्वारा जो भी प्रस्ताव रखे गए, गुट निरपेक्ष शिखर सम्मेलन में उन्हें यथारूप में स्वीकृत कर लिया गया।

1-6 सितम्बर, 1992 को जकार्ता शिखर सम्मेलन के दौरान तत्कालीन भारतीय प्रधानमन्त्री पी. वी. नरसिम्हाराव ने आतंकवाद के विरुद्ध कठोर रवैया अपनाने का सदस्य देशों से आह्वान किया, जिसके परिणामस्वरूप सम्मेलन की अन्तिम घोषणा में आतंकवाद की कड़ी निन्दा की गयी थी। काटीजिना में 18-20 अक्टूबर, 1995 को आयोजित 11वें निर्गुट शिखर सम्मेलन में भारतीय पहल पर सम्मेलन की घोषणा में आतंकवादी कार्यवाहियों की स्पष्ट शब्दों में भर्त्सना की गई।

सितम्बर, 1998 में डरबन में आयोजित 12वें गुट निरपेक्ष शिखर सम्मेलन में भारत के नाभिकीय परीक्षणों का खुलासा करते हुए तत्कालीन प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी ने नाभिकीय हथियार सम्पन्न देशों से अनुरोध किया कि वे इनके अभिसमय पर वार्ता हेतु गु निरपेक्ष आन्दोलन के साथ सम्मिलित हों।

24-25 फरवरी, 2003 को कुआलालम्पुर में सम्पन्न 13वें गुट निरपेक्ष आन्दोलन के शिखर सम्मेलन में भारतीय प्रयासों के फलस्वरूप ही आतंकवाद से निबटने हेतु विश्व सम्मेलन आयोजित करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग का आह्वान किया गया था। 16-17 सितम्बर 2006 को हवाना में हुए 14वें निर्गुट सम्मेलन में तत्कालीन प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने भाग लिया था तथा अफगानिस्तान के दक्षिण एवं पूर्वी भागों में आतंकवादियों के संगठित होने  पर गहरी चिन्ता व्यक्त की गई थी।

गुट निरपेक्ष देशों के 15वें शिखर सम्मेलन 15-16 जुलाई, 2009 के दौरान मिस्र के शर्म-अल-शेख में भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने दुनिया को मुद्रा अवस्फीति की चेतावनी देते हुए आतंकवाद का मुद्दा उठाते हुए कहा था कि अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद की रोकथाम के लिए एक व्यापक सन्धि की आवश्यकता है।

तेहरान (ईरान) में अगस्त 2012 में सम्पन्न 16वें शिखर सम्मेलन के दौरान भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने सीरिया संकट के शान्तिपूर्ण समाधान का पक्ष लेते हुए फिलीस्तीन का समर्थन किया। 17वें शिखर सम्मेलन में भारतीय शिष्ट मण्डल का प्रतिनिधित्व प्रधानमन्त्री के स्थान पर उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी द्वारा किया गया। 18 सितम्बर, 2016 को सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए भारतीय उपराष्ट्रपति ने आतंकवाद पर तीखे प्रहार करते हुए ‘नाम’ के अन्तर्गत आतंकवाद से निपटने हेतु एक कार्य दल गठित करने पर बल दिया।

18वें गुट निरपेक्ष शिखर सम्मेलन में बाकू ( अजरबेजान) में 25 अक्टूबर, 2019 को भारतीय उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने दुनिया के सामने स्पष्ट शब्दों में आतंकवाद के खिलाफ कठोर कार्यवाही को समय की आवश्यकता बताया।

Conclusion :-

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