[SET-A] MP Board 12th business study 20 महत्वपूर्ण प्रश्न Ardhvarshik Paper 2023-24 PDF : एमपी बोर्ड 12वीं व्यवसाय अध्ययन अर्द्धवार्षिक पेपर 2023 असली पेपर
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एमपी बोर्ड Class 12th business study 20 महत्वपूर्ण प्रश्न Ardhvarshik Paper 2023-24
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MP Board Class 12th business study Ardhvarshik Paper 2023-24 Real Paper
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Overview – MP Board class 12th business study 20 महत्वपूर्ण प्रश्न Ardhvarshik Paper 2023-24
Board | Madhya Pradesh Board of Secondary Education (MPBSE) |
Class | 12th |
Exam | Mp Board Half yearly Exam 2023-24 |
MP Half Yearly Exam Date | December 2023 |
Time Table | 06.12.2023 to 15.12.2023 |
Official Website | mpbse.nic.in |
एमपी बोर्ड कक्षा 12वीं व्यवसाय अध्ययन अर्द्धवार्षिक परीक्षा 2023-24
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All Subject PDF Download Class 12th Half Yearly Exam 2023-24
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12th व्यवसाय अध्ययन अर्द्धवार्षिक परीक्षा 2023-24 | Download करे |
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12th गणित अर्द्धवार्षिक परीक्षा 2023-24 | Download करे |
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कक्षा 12वीं व्यवसाय अध्ययन अर्द्धवार्षिक परीक्षा 2023-24 असली पेपर
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Class 12th business study 30 महत्वपूर्ण प्रश्न
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प्रश्न 1. प्रबन्ध से क्या आशय है?
उत्तर- प्रबन्ध एक व्यापक शब्द है जिसे आधुनिक समय में कई अर्थों में प्रयोग किया जाता है। संकुचित अर्थ में, प्रबन्ध का आशय अन्य व्यक्तियों से कार्य लेने की कला से लिया गया है, किन्तु विस्तृत अर्थ में प्रबन्ध को उस कला एवं विज्ञान से परिभाषित किया गया है जो किसी व्यावसायिक संस्थान की नीतियों के निर्धारण, क्रियाओं के समन्वय और नीतियों के क्रियान्वयन हेतु वैयक्तिक एवं सामूहिक प्रयासों के नियोजन, संगठन, निर्देशन, नियंत्रण एवं अभिप्रेरण से संबंधित है।
प्रश्न 2. प्रबन्ध की परिभाषा दीजिए। (कोई दो)
उत्तर- विलियन एच. न्यूमेन के अनुसार- “किसी सामान्य उद्देश्य को प्राप्त करने हेतु किसी व्यक्ति व समूह के प्रयासों का मार्गदर्शन, नेतृत्व और नियंत्रण ही प्रबन्ध कहलाता है।”
- हेनरी फेयोल के अनुसार- “प्रबन्ध करने का अर्थ पूर्वानुमान, नियोजन, संगठन, निर्देशन, समन्वय और नियंत्रण करना है।”
प्रश्न 3. प्रबन्ध, प्रशासन एवं संगठन में संबंध बताइये।
उत्तर- प्रबन्ध का अर्थ– प्रबन्ध वह शक्ति है जो पूर्व निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए संगठन का नेतृत्व, मार्गदर्शन और निर्देशन करती है।
प्रशासन का अर्थ– प्रशासन से आशय व्यवसाय के उस कार्य से है जो सामान्य नीतियों, लक्ष्यों एवं सीमाओं को व्यक्त एवं परिभाषित करता है। प्रशासन का कार्य उच्च स्तर पर नीतियाँ निर्धारित करना, लक्ष्य निर्धारित करना, समन्वय स्थापित करना तथा विभिन्न प्रयासों को नियन्त्रित करना होता है।
संगठन का अर्थ- किसी कार्य को पूरा करने हेतु किन-किन क्रियाओं को किया जाये इसका निर्धारण करना तथा क्रियाओं
प्रश्न 4. प्रबन्ध के विभिन्न स्तरों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- सामान्यतः प्रबन्ध के निम्न तीन स्तरों को सभी उपक्रमों में स्वीकृत किया गया है-
उच्च स्तरीय प्रबन्ध- किसी उपक्रम के प्रबन्ध स्तरों में उच्च स्तरीय प्रबन्ध का स्थान सर्वोपरि होता है। एक बड़े आकार के उपक्रम के उद्देश्य व नीतियों को सामान्यतः संचालक मण्डल निर्धारित करता है। इसके अन्तर्गत प्रबन्धक, संचालक, महाप्रबन्धक, संचालक मण्डल आते हैं।
मध्यम स्तरीय प्रबन्ध- उच्च स्तर व निम्न स्तर के बीच के अधिकारी ही मध्य स्तरीय प्रबन्ध में शामिल होते हैं। के इस स्तर में विभागीय प्रबन्धक; जैसे-उत्पादन प्रबन्धक, वित्त ग प्रबन्धक, विपणन प्रबन्धक आदि आते हैं।
निम्न स्तरीय प्रबन्ध- प्रबन्धकीय स्तरों में निम्न स्तरीय प्रबन्ध में पर्यवेक्षण का कार्य किया जाता है। इसे प्रथम पंक्ति का प्रबन्ध भी कहते हैं। इसमें फोरमैन, पर्यवेक्षक आदि 1. शामिल किये जाते हैं। इस स्तर के प्रबन्धकों का मुख्य कार्य के यह देखना होता है कि उनके अधीनस्थ कर्मचारियों ने कार्य सम बराबर ठीक ढंग से किया है अथवा नहीं।
प्रश्न 5. पेशे की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर- पेशे की विशेषताएँ निम्नलिखित है-
- क्रमबद्ध ज्ञान- किसी भी पेशे हेतु क्रमबद्ध ज्ञान व तकनीकी क्षमता का होना प्रबन्धक के लिये आवश्यक है। पेशा सिद्धान्तों, नियमों तथा ज्ञान में परिपूर्ण है। इन सिद्धान्तों व नियमों का ज्ञान प्रबन्धक के लिये आवश्यक है जिसे विभिन्न संस्थानों व विश्वविद्यालयों में प्रशिक्षण द्वारा प्राप्त किया जा सकता है
- नैतिक मानक- प्रबंधन के क्षेत्र में नैतिक मानक आवश्यक है। इसी प्रकार हर पेशे के अपने नैतिक मानदण्ड होते हैं जिनका पालन करना पेशेवर व्यक्ति द्वारा करना अपेक्षित होता है।
- नवीन विचार व निष्पादन- पेशेवर व्यक्ति से यह आशा की जाती है कि वह अपने पेशे में नवीन विचारों व सिद्धान्तों को अपने अनुभव के अनुसार विकास करेगा और उन्हें अपने पेशे में प्रयोग करेगा। इसी प्रकार प्रबन्धक भी अपने प्रबन्धकीय कार्य में नवीन विचारों को उत्पन्न करते हैं और उसका प्रयोग प्रबन्धक कार्य में करते हैं।
प्रश्न 6. मानसिक क्रान्ति का क्या आशय है?
उत्तर- मानसिक क्रान्ति- श्रम तथा प्रबन्ध के बीच अच्छे सम्बन्धों की स्थापना के लिए एफ.डब्ल्यू. टेलर ने मानसिक क्रान्ति (Mental Revolution) पर बल दिया है, अर्थात् श्रमिकों को चाहिये कि वे प्रबन्धकों को अपना हितेषी समझें तथा उनके साथ सहयोग की भावना का परिचय दें। साथ ही प्रबन्धकों को चाहिये कि वे अपने मस्तिष्क से इस
विचारधारा का त्याग करें कि श्रमिक कामचोर होते हैं और कम परिश्रम से अधिक मजदूरी प्राप्त करना चाहते हैं। श्रमिकों एवं प्रबन्धकों की मान्यताओं एवं विचारों में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाना ही मानसिक क्रान्ति है। एक अंग्रेजी कहावत है, “घोड़े को पानी तक ला सकते हैं पर पानी पीने को मजबूर नहीं कर सकते हैं।” अर्थात् श्रमिक में कार्य के प्रति लगन होना आवश्यक है।
प्रश्न 7. प्रबन्ध के सिद्धान्तों की प्रकृति या विशेषताएँ बताइए।
उत्तर- प्रबन्ध के सिद्धान्तों की प्रकृति या विशेषताएँ निम्न हैं-
- सर्वप्रयुक्त- प्रबन्ध के सिद्धान्त सभी प्रकार के संगठनों में प्रयुक्त किये जा सकते हैं। संगठन की समस्याओं का हल इन सिद्धान्तों के द्वारा किया जा सकता है।
- लचीलापन– प्रबंधकीय सिद्धांत लचीले होते हैं। परिस्थितियाँ अनुरूप प्रबन्धक इनमें सुधार कर सकते हैं। अभी तक कोई सिद्धान्त अन्तिम सत्य नहीं माना गया है।
- सापेक्षता- प्रबंधन के सिद्धांत सापेक्ष हैं, निरपेक्ष नहीं। इनका सम्बन्ध परिस्थितियों से है।
- सामान्य मार्गदर्शन- प्रबन्धकीय सिद्धान्त उपक्रम के लिये मार्गदर्शन का कार्य करते हैं, ये सभी समस्याओं का समाधान नहीं होते हैं।
- समान महत्व- उपक्रम के लिये प्रबन्ध के सभी सिद्धान्त समान महत्व के होते हैं। संस्था के विकास के लिये सभी सिद्धान्त समान महत्व की भूमिका निभाते हैं।
प्रश्न 8. प्रबन्ध के सिद्धान्तों का महत्व एवं आवश्यकता बताइये।
उत्तर-
- प्रबन्धकों को उपयोगी ज्ञान उपलब्ध कराते हैं- प्रबन्ध के सिद्धान्त प्रबन्धकों को उपयोगी ज्ञान उपलब्ध कराते हैं। इनके अध्ययन से प्रबन्धक अपनी पिछली भूलों में सुधार करते हैं। इन सिद्धान्तों के अध्ययन से प्रबन्धकीय निपुणता में वृद्धि होती है।
- संसाधनों का अधिकतम उपयोग- प्रबन्ध के सिद्धान्त मानवीय एवं भौतिक दोनों संसाधनों के अधिकतम उपयोग पर जोर देते हैं। अधिकतम उपयोग से अभिप्राय संसाधनों के ऐसे उपयोग से है जिनसे अधिकतम लाभ प्राप्त किया जा सके। संसाधनों का अपव्यय रोकना प्रबन्ध का उद्देश्य होता है।
- वैज्ञानिक निर्णय- प्रबन्धक वैज्ञानिक निर्णय ले सके इसके लिये प्रवन्ध के सिद्धान्त प्रबन्धकों को आवश्यक प्रशिक्षण प्रदान करते है। प्रबन्धकों के निर्णय परिस्थिति के तर्कसंगत मूल्यांकन पर आधारित होते हैं।
- दक्षता में वृद्धि– प्रबन्ध के सिद्धान्त प्रबन्धकों की दक्षता में वृद्धि करते हैं। प्रबन्धकों के वैज्ञानिक दृष्टिकोणों से, कार्य की दक्षता में वृद्धि होती है।
प्रश्न 9. निजीकरण से क्या आशय है?
उत्तर- राष्ट्रीयकृत उद्योगों या अन्य वाणिज्यिक उद्योगों में सरकार के स्वामित्व वाली अंश पूँजी का निजी विनियोजकों को विक्रय, भले ही इससे इन संगठनों पर सरकारी नियन्त्रण रहे या समाप्त हो, निजीकरण कहलाता है।
प्रश्न 10. वैश्वीकरण या भूमण्डलीकरण से क्या आशय है?
उत्तर– विश्व की अर्थव्यवस्था से जुड़ पाना ही वैश्वीकरण है। वैश्वीकरण में विश्व की विभिन्न अर्थव्यवस्थाएँ एकजुट हो जाती हैं, जिससे एक सम्मिलित वैश्विक अर्थव्यवस्था का उदय होता है।
वैश्वीकरण से राष्ट्र शेष विश्व से जुड़ जाता है, अलग नहीं रहता है। वैश्वीकरण से भौगोलिक दूरी एवं राजनीतिक सीमाओं का बंधन समाप्त हुआ है। वैश्वीकरण के द्वारा घरेलू उद्योग विदेशी प्रतिस्पर्धा का सामना करने में सक्षम होते हैं।
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प्रश्न 11. बाह्य पर्यावरण से क्या आशय है?
उत्तर- बाह्य पर्याररण व्यवसाय को प्रभावित करने वाली बाहरी तत्वों के समूह को कहा जाता है। आर्थिक तत्व, सामाजिक तत्व, सांस्कृतिक तत्व, सहकारी और कानूनी तत्व तथा प्राकृतिक तत्व शामिल है।
बाह्य पर्यावरण में सभी बाहरी कारक, प्रभाव, घटनाएँ, संस्थाएं शामिल होती हैं, जो अक्सर संस्था की सीमाओं के बाहर मौजूद होती है लेकिन उनका व्यवसाय उद्यम के संचालन, प्रदर्शन लाभप्रदता और अस्तित्व पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
प्रश्न 12. व्यावसायिक परिवेश (वातावरण) की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर- व्यावसायिक वातावरण में प्रमुख रूप से निम्न विशेषताएँ पायी जाती हैं-
- बाहरी शक्तियों की समग्रता- व्यावसायिक वातावरण व्यवसाय के बाहर उपलब्ध अनेक शक्तियों का योग (Sum) है। इन बाहरी शक्तियों पर व्यवसाय का कोई नियन्त्रण नहीं होता है। इन शक्तियों की प्रकृति सामूहिक होती है।
- व्यावसायिक वातावरण गतिशील होता है- व्यावसायिक वातावरण के घटकों में परिवर्तन होता रहता है। व्यावसायिक वातावरण स्वभावतः गतिशील (Dynamic) होता है।
- विशिष्ट एवं साधारण शक्तियाँ- व्यावसायिक वातावरण को विशिष्ट शक्तियाँ जैसे- निवेशक, ग्राहक, प्रतियोगी एवं साधारण शक्तियाँ जैसे- सामाजिक, राजनीतिक, अन्तर्राष्ट्रीय एवं आर्थिक शक्तियाँ इत्यादि प्रभावित करते हैं।
- अनिश्चितता – सामान्यतः व्यावसायिक वातावरण अनिश्चित होता है। वातावरण में तेजी से होने वाले परिवर्तनों के कारण भविष्य की घटनाओं का निश्चितः पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है।
प्रश्न 13. निजीकरण तथा उदारीकरण में अन्तर बताइए।
उत्तर- निजीकरण तथा उदारीकरण एक ही गाड़ी के दो पहिये ले हैं। फिर भी उदारीकरण तथा निजीकरण में निम्नलिखित अन्तर म पाये जाते हैं-
निजीकरण
(1) इसके विपरीत, निजीकरण एक संकुचित विचार है जिसका प्रत्येक क्षेत्र में लागू नहीं किया जा सकता है।
(2) जबकि निजीकरण में व्यक्तिगत स्वतन्त्रता होती है।
(3) जबकि निजीकरण निजी लाभ की भावना से प्रेरित होता है।
(4) जबकि निजीकरण की व्यवस्था लाभ की भावना से प्रेरित होती है।
उदारीकरण
- उदारीकरण एक व्यापक अवधारणा है, जिसको विकास के प्रत्येक क्षेत्र में लागू किया जा सकता है।
- उदारीकरण में उद्योगों को पूर्ण रूप से विकास होने का अवसर दिया जाता है। उदारीकरण सार्वजनिक की भावना को ध्यान में रखते हुए अपनाया जाता है।
- उद्योगों का आधुनिकीकरण तथा विस्तार सुनिश्चित करने के लिए उदारीकरण की नीति को अपनाया जाता है।
प्रश्न 14. वैश्वीकरण की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर- वैश्वीकरण की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं-
(1) विभिन्न देशों में पारस्परिक लेन-देन में वृद्धि हुई है।
(2) व्यापार में भौतिक, भौगोलिक एवं राजनीतिक सीमाएँ जैसी कोई बाधा नहीं रही है।
(3) विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का भारत में आगमन हुआ है।
(4) देशी कम्पनियों ने भी विदेश में अपनी शाखाएँ खोली है।
(5) विश्व के सभी देशों में सूचनाओं एवं तकनीकी का स्वतंत्र प्रवाह संभव हुआ है।
(6) भारत के विदेशी मुद्रा भण्डार में अकल्पनीय वृद्धि हुई है।
प्रश्न 15. उद्देश्य से क्या आशय है?
उत्तर- उद्देश्य परिणाम होते हैं जिनकी प्राप्ति के लिये क्रियाएँ की जाती हैं। ये न केवल नियोजन के अन्तिम बिन्दु (end point) को ही स्पष्ट करते हैं अपितु प्रबन्धकीय क्रियाओं जैसे संगठन, कर्मचारियों की नियुक्ति, निर्देशन, समन्वय, उत्तप्रेरणा एवं नियन्त्रण आदि के भी अन्तिम बिन्दु होते हैं। इस प्रकार संस्था के उद्देश्यों का निर्धारण नियोजन का प्रथम चरण है।
प्रश्न 16. नियोजन से क्या आशय है?
उत्तर- भविष्य में क्या करना है, इस बात को पहले से निर्धारित करना ही नियोजन है। सामान्यतः कल के कार्य का आज निर्धारण करना ही नियोजन है। दूसरे शब्दों में, कब, कौन-सा कार्य, कैसे, कौन, किन साधनों से करेगा, इसका पूर्व निर्धारण करना ही नियोजन है। वस्तुतः किसी घटना या बात का पहले से अनुमान लगाना ही नियोजन नहीं है अपितु नियोजन का आशय तो किसी कार्य को करने या न करने का निर्णय लेने से है।
प्रश्न 17. नियोजन के उद्देश्य बताइये।
उत्तर- नियोजन के निम्नलिखित प्रमुख उद्देश्य हैं-
- भावी कार्यों में निश्चितता- नियोजन के द्वारा उपक्रम मे भविष्य में की जाने वाली क्रियाओं में निश्चितता लाने का प्रयास किया जाता है।
- समन्वय- नियोजन से उपक्रम की विभिन्न गतिविधियों में समन्वय स्थापित किया जाता है।
- पूर्वानुमान लगाना- पूर्वानुमान नियोजन का सार (Ess- ence) है। नियोजन के द्वारा भविष्य के संबंध में पूर्वानुमान के आधार पर वर्तमान की योजना बनायी जाती है। प्रो. ड्रकर के अनुसार, “नियोजन के अन्तर्गत प्रबन्ध द्वारा भविष्य में झाँकने का प्रयास है।”
- प्रबंध में मितव्ययिता- नियोजन के द्वारा भविष्य में की जाने वाली गतिविधियों की योजना बन जाती है, जिससे प्रबन्ध में मितव्ययिता (Economy) आती है।
प्रश्न 18. औपचारिक संप्रेषण किसे कहते हैं?
उत्तर- औपचारिक सम्प्रेषण से तात्पर्य किसी संस्था की संरचना में अधिकारिक माध्यमों द्वारा अधिकारियों तथा अधीनस्थों के मध्य, अधीनस्थों तथा अधिकारियों के मध्य तथा प्रबन्धकों तथा कर्मचारियों के मध्य सम्प्रेषण का प्रवाह होना है।
प्रश्न 19. अनौपचारिक संप्रेषण किसे कहते हैं?
उत्तर- अनौपचारिक सम्प्रेषण से तात्पर्य सम्प्रेषक व सम्प्रेषिती के मध्य मित्रता, घनिष्ठता या पारस्परिक भावना से ओत-प्रोत होकर अनौपचारिक सम्बन्ध स्थापित कर सन्देशों का आदान- प्रदान करना है। इस प्रकार के सम्प्रेषण प्रायः मौखिक होते हैं जिन पर नियन्त्रण सम्भव नहीं होता।
प्रश्न 20. नेतृत्व की विशेषताएँ बताइये।
उत्तर– नेतृत्व की प्रमुख विशेषताएँ या लक्षण निम्नानुसार हैं-
- सतत् क्रियाशीलता- संस्था के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए नेता को स्वयं सतत् क्रियाशील होना चाहिए। अनुयायियों को क्रियाशील बनाने के लिए नेता की क्रियाशीलता आवश्यक है।
- आदर्श आचरण- अनुयायियों के समक्ष नेता को आदर्श आचरण प्रस्तुत करना चाहिए। नेता का आदर्श आचरण अनुयायी अपने जीवन में अपनाते हैं। नेता की कथनी और करनी में समानता होना चाहिए।
- उद्देश्यों की समानता- नेता एवं उसके अनुयायियों के उद्देश्यों में समानता होनी चाहिए। समान उद्देश्य के व्यक्ति ही एक साथ कार्य कर सकते हैं। अलग-अलग उद्देश्य होने पर नेतृत्व प्रभावहीन हो जाता है।
- प्रभावीकरण प्रक्रिया- नेतृत्व में अनुयायियों को प्रभावित कर उनसे वांछित कार्य करवाया जाता है। प्रभावीकरण नेतृत्व का सार है।
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प्रश्न 21. संप्रेषण प्रक्रिया के आवश्यक तत्व बताइए।
उत्तर- संप्रेषण एक चक्रीय प्रक्रिया है, इसके प्रमुख तत्व निम्न प्रकार हैं-
- प्रेषक या संदेश भेजने वाला- जिस व्यक्ति के द्वारा संदेश भेजा जाता है उसे प्रेषक या संदेश भेजने वाला कहते हैं। यह व्यक्ति संप्रेषण का सूत्रधार कहलाता है। संदेश लिखकर, बोलकर या चित्र बनाकर दिया जा सकता है। पूर्ण एवं सही संप्रेषण के लिए यह आवश्यक है कि प्रेषक के मस्तिष्क में संदेश स्पष्ट हो।
- सन्देश प्राप्तकर्ता- प्रेषक द्वारा भेजे गये संदेश को प्राप्त करने वाला सन्देश प्राप्तकर्ता कहलाता है। संदेश प्राप्तकर्ता के अभाव में संप्रेषण प्रक्रिया अधूरी मानी जाती है।
- सन्देश- संप्रेषण की विषय वस्तु सन्देश कहलाती है। यह आदेश, सुझाव, सम्मति, भावनाएँ, विचार, दृष्टिकोण, प्रार्थना, शिकायत या अन्य किसी रूप में हो सकता है।
- चिन्ह- संप्रेषण के वे शब्द, चित्र, संकेत, मुद्राएँ या भाव जो प्रेषक संप्रेषण के लिए प्रयुक्त करता है, संप्रेषण चिन्ह कहलाते हैं।
प्रश्न 22. नियन्त्रण की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर- विभिन्न विद्वानों के विचारों का विश्लेषण करने पर ह नियंत्रण की निम्न विशेषताएँ या प्रकृति स्पष्ट होती है-
- नियंत्रण भविष्योन्मुखी- नियंत्रण आगे देखने वाली प्रक्रिया है। इसके द्वारा भविष्य में होने वाली हानियों को रोकने का प्रयत्न किया जाता है। भूतकालीन घटनाओं को नियंत्रित नहीं किया जा सकता है और न ही ऐसा कर पाने से कोई लाभ होता है। उनसे सबक लेकर भविष्य में सुधार अवश्य किया जा सकता है।
- उत्तरदायित्व का निर्धारण- नियंत्रण का उद्देश्य न केवल बजेटेड तथा वास्तविक निष्पादन में होने वाले परिवर्तनों को तत्काल ध्यान में लाकर सुधारना होता है, अपितु गलत कार्यों के लिये उत्तरदायी व्यक्तियों को भी प्रकाश में लाना होता है, ताकि उनके विरुद्ध कार्यवाही की जा सके।
- नियंत्रण एक सतत् प्रक्रिया है- नियंत्रण एक सतत् प्रक्रिया है जिसकी आवश्यकता उपक्रम में सदैव बनी रहती है। नियंत्रण का कार्य कभी रुकता नहीं है।
- नियंत्रण एक गतिशील प्रक्रिया है- नियंत्रण एक गतिशील (Dynamic) प्रक्रिया है जिसमें परिस्थितियों के बदलते रहने के कारण निरन्तर परिवर्तन की आवश्यकता रहती है।
प्रश्न 23. पूँजी बाजार की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर- पूँजी बाजार की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित है-
(1) पूँजो बाजार मध्यम और दीर्घकालीन धन के लिए एक बाजार है।
(2) इसमे वे सभी संगठन, संस्थान और उपकरण शामिल है जो दीर्घकालीन और मध्यम अवधि के फण्ड प्रदान करते है।
(3) पूँजी बाजार विभिन्न मध्यस्थों जैसे- दलालों, अंडरराइटरों आदि का उपयोग करता है।
(4) पूँजी बाजार की गतिविधियाँ एक अर्थव्यवस्था में पूंजी निर्माण की दर निर्धारित करती है।
(5) पूँजी बाजार उन लोगों के लिए आकर्षक अवसर प्रदान करता जिनके पास अधिशेष निधि है।
प्रश्न 24. सेबी के मुख्य कार्यों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- 1. निवेशकों की सुरक्षा- निवेशकों के हितों की सुरक्षा का अर्थ इन्हें कम्पनियों द्वारा प्रविवरण पत्रों में दी जाने वाली तल सूचनाओं को बचाना, सुपुर्दगी व भुगतान जोखिम को कम करना आदि से है। अत: सेबी का प्रथम उद्देश्य निवेशकों का सुरक्षा प्रदान करना है।
- बचतों का नियमित प्रवाह- निवेशक पूँजी बाजार की ओर आकर्षित तभी होते है, यदि उन्हें निवेश के लिए मन पसंद प्रतिभूतियाँ उपलब्ध हो। इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु सेबी ने अनेक नई प्रतिभूतियों की शुरूआत की है।
- दलालों पर नियंत्रण- पूँजी बाजार पर नियंत्रण करने के लिए दलालों तथा अन्य मध्यस्थों की क्रियाओं पर नजर रखना जरूरी है। इन पर नियंत्रण के लिए सेबी को स्थापित करना जरूरी था।
- व्यवहारों में पारदर्शकता – पूँजी बाजार में निवेशकों का विश्वास व्यवहारों की पारदर्शकता से बढ़ता है। सेबी को स्थापना से व्यवहारों की पारदर्शकता बढ़ी है।
प्रश्न 24. वित्तीय प्रबन्ध से क्या आशय है?
उत्तर- व्यावसायिक संस्था के लिए समुचित वित्त की व्यवस्था करना एवं उसका अधिकतम लाभार्जन प्राप्त करने के लिए उपयोग करना ही वित्तीय प्रबंध है। वित्तीय प्रबन्ध, प्रबन्ध क्रिया का ही एक कार्य है, जिसके अन्तर्गत वित्त का नियोजन एवं नियन्त्रण किया जाता है।
प्रश्न 25. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के उद्देश्य लिखिए।
उत्तर- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत प्रस्तुत अधिनियम में निम्नलिखित उद्देश्यों का उल्लेख किया गया है-
(1) उपभोक्ता के हितों का संरक्षण करना।
(2) उपभोक्ता के अधिकारों का संवर्धन एवं संरक्षण करना। (3) उपभोक्ता को आवश्यक क्षतिपूर्ति दिलवाना।
(4) उपभोक्ता संरक्षण परिषदों (Consumer Protection Council) का गठन करना।
प्रश्न 26. उपभोक्ता के अधिकार बताइये।
उत्तर- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 6 के अन्तर्गत उपभोक्ता को प्रदत्त अधिकार निम्नलिखित हैं-
- उपभोक्ता शिक्षा संबंधी अधिकार- उपभोक्ता को उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार है। शिक्षित उपभोक्ता ही शिकायत कर सकता है और अपनी बात विभिन्न स्तरों पर रख सकता है।
- स्वस्थ वातावरण का अधिकार – उपभोक्ता को माल या सेवा क्रय करते समय या उपयोग करते समय अपने आस- पास का वातावरण स्वस्थ मिले इस बात का अधिकार है। 3. क्षतिपूर्ति का अधिकार- किसी भी वस्तु में त्रुटि होने पर उपभोक्ता को वस्तु के निःशुल्क परिवर्तन का या क्षतिपूर्ति का – अधिकार होता है।
- विचार रखने का अधिकार – उपभोक्ता को उत्पाद के – मूल्य गुणवत्ता इत्यादि के बारे में विचार रखने का अधिकार – होता है।
12th business study Notes Hindi pdf – एल्कोहाॅल, फिनाॅल और ईथर
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